भारत के भगोड़े पूंजीपतियों को लाने के लिए सरकारी खजाने से 200 करोड़ से अधिक हुए खर्च:अतुल कुमार अनजान

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पिन्टू सिंह

(बलिया) देश की राष्ट्रीय कृत बैंको को देश के उद्योगपतियों ने चूना लगाकर उन्हें तबाह करने की एक सुनिश्चित योजना बना रखी है। इसी योजना के तहत पिछले 20 वर्षों में इन बैंकों को कमजोर करने की निरंतर कोशिश होती रही है। केंद्र सरकार को इन बैंकों को बदनाम और बंद करके इन राष्ट्रीयकृत बैंकों की साख खत्म करना चाहती है l कारपोरेट कंपनियों के निजी बैंकों को बढ़ावा देना चाहती है l उक्त विचार व्यक्त करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार “अनजान” ने दैनिक पूर्वांचल न्यूज संवाददाता के दूरभाष पर बयान में कहा कि देश से बड़े-बड़े पूंजीपति, उद्योगपति अरबों रुपए लेकर देश छोड़कर भाग गए।

सरकार चाहे किसी का हो लेकिन रोकने में असफल रही l ज्यादा भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में भागने वाले उद्योगपतियों में विजय माल्या,मेहुल चौकसी , नीरव मोदी, निशांत मोदी का नाम मीडिया में चर्चा में है l इसके अतिरिक्त पुष्पेश पाध्य ,आशीष जोबनपुत्र , सनी कालरा, आरती हायजा, संजय कालरा, बरसा कालरा, सुधीर कालरा, जादिन मेहता, उमेश बारीकी ,कमलेस बारीकी, निलेश पारेख, विनय मित्तल, एकवचन गढी,चेतन,जयंती लाल दारा, नितिन जयंती लाल दारा, दीप्तिवन चेतन, साबिया शेठ, राजीव गोयल, अलका गोयल, ललित मोदी ,रितेश जैनी, हितेश नागेंद्र भाई पटेल ,मयूरी बेहन पटेल, आशीष सुरेश भाई आदि कई नाम शामिल है। कुल मिलाकर 10 ट्रिलियन रुपए सरकारी राष्ट्रीय कृत बैंकों से सरकारों की कृपा से उनके अपनों ने उनके कार्यकाल में चुराया l

उन्हीं की सहयोग से देश छोड़कर के भाग गए l आज नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या को देश में लाने के लिए देश की जनता की गाढ़ी कमाई के सरकारी खजाने से लगभग 200 करोड़ से अधिक कोर्ट- कचहरी में खर्च हो गए l जबकि अधिकांश भगोड़े की पैरवी कोर्ट में भी भारतीय जनता पार्टी से संबंधित वकील ही वकालत कर रहे हैं। मोदी जी ने कहा था कि” न् खाएंगे ना खाने देंगे ” इस मुहावरा का उल्टा चरितार्थ देखने को मिल रहा है। जिन जिन बातों की चर्चा लोक लुभावन संबोधन में उन्होंने किया सीधा उसका उल्टा ,देश की जनता को भुगतना पड़ रहा है। अतुल कुमार अनजान ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक श्वेत पत्र जारी करके देश को यह बताना चाहिए कि जब प्रधानमंत्री बने थे। तब देश पर कितना परदेसी कर्जा था और उस पर कितना ब्याज दिया जाता था। विगत 7 वर्षों में उनके प्रधानमंत्री कॉल में देश पर कितना विदेशी कर्जा है और भारत कितना ब्याज प्रति वर्ष दे रहा है। इसके अतिरिक्त पारदर्शिता का पारदर्शिता का यह भी तकाजा है। उन्हें देश को बताना चाहिए की “प्राइम मिनिस्टर केयर फंड” में कितना पैसा आया और कहां खर्च हुआ l

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