बिहार- शिवहर प्रखंड स्थित मॉडल आंगनबाड़ी केंद्र, चमनपुर 84 में छह माह के बच्चों को अन्नप्रासन कराया गया
बच्चों के मुठ्ठी भर पेट को सही पोषण से भरें
बच्चों के मुठ्ठी भर पेट को सही पोषण से भरें
– शिवहर प्रखंड स्थित मॉडल आंगनबाड़ी केंद्र, चमनपुर 84 में छह माह के बच्चों को अन्नप्रासन कराया गया
शिवहर। 20 सितंबर
शिशु के सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी है कि उसको पूर्ण पोषण मिले। जन्म से छह माह तक सिर्फ माँ का दूध ही पूर्ण व समुचित आहार का कार्य करता है। किन्तु छह माह के बाद शिशु के शरीर की बढ़ती जरूरतों के अनुसार, उसको स्तनपान के साथ-साथ ऊपरी आहार देना भी अनिवार्य है। इसी अवधारणा के साथ शिवहर प्रखंड स्थित मॉडल आंगनबाड़ी केंद्र, चमनपुर 84 में सामूहिक रूप से छह माह के बच्चों को अन्नप्रासन कराया गया। इसमें तीन बच्चों को पहली बार अन्न का स्वाद चखाया गया। जिला प्रोग्राम पदाधिकारी सीमा रहमान ने बच्चों को अन्नप्रासन कराया। इस अवसर पर पोषक क्षेत्र की माताओं को जिला प्रोग्राम पदाधिकारी द्वारा छह माह के होते ही बच्चों को ऊपरी आहार की सलाह एवं उसकी उपयोगिता बताई गई।
बच्चों को सही पोषण देना जरूरी-
बताया गया कि बच्चों के मुठ्ठी भर पेट को भरना आसान है। परन्तु सही पोषण देना बहुत सावधानी का काम है। सही पोषण हेतु बच्चों के भोजन में विविधता जरूरी है। इस विविधता के लिए संपूर्ण पोषक तत्व यथा कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, प्रोटीन, वसा आदि आवश्यक है। जिला समन्वयक अवनीश पाण्डेय ने आंगनबाड़ी केंद्र परिसर में उपलब्ध भूमि को पोषण वाटिका के रूप में विकसित करने की प्रेरणा दी। जिससे आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों को रसायन मुक्त सब्जी एवं फल उपलब्ध हो सके।
अन्नप्रासन का है अपना महत्व-
छह महीने की आयु में शिशु का खाने के प्रति रुझान बढ़ाने को अन्नप्रासन कहा जाता है। यह केवल रस्म नहीं है, इसका वैज्ञानिक महत्व है। छह महीने की आयु से शिशु की चूसने की क्षमता कम होती जाती है, उसके मसूड़े कठोर होने लगते हैं और स्वाद ग्रंथियों का विकास होने लगता है। ऐसे में उसका मां के दूध के अलावा दूसरे स्वाद व खाद्य के प्रकारों से परिचय उसके विकास और सेहत के लिए जरूरी हो जाता है। बच्चे के पहले जन्मदिन तक आहार व हर तरह के स्वाद से शिशु की अच्छी तरह पहचान करवानी चाहिए है। जिन शिशुओं को भोजन देने में देर की जाती है, उनमें एनीमिया यानी कमजोरी आने लगती है, क्योंकि केवल मां का दूध शिशु के शारीरिक जरूरत की पूर्ति करने में सफल नहीं रहता। इन सभी वजहों से छह महीने बाद बच्चों का अन्नप्रासन कराया जाता है, जिसका अपना महत्व है।