स्वास्थ्य विभाग :लाचार उप मुख्यमंत्री सह स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव का मिशन 60 एक दिखावा।

ज्यादातर लोग आज भी निजी क्लीनिक के भरोसे हैं।

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स्वास्थ्य विभाग :लाचार उप मुख्यमंत्री सह स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव का मिशन 60 एक दिखावा।

तहलका न्यूज डेस्क

पटना: जिले के स्वास्थ्य विभाग पर सरकार करोड़ों रुपए खर्च करके भी आम लोगों का भरोसा नहीं जीत पा रही है। ज्यादातर लोग आज भी निजी क्लीनिक के भरोसे हैं। स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार की जनक जिला स्वास्थ्य समिति के डीपीएम,डी एम, और पीएचसी, सीएससी रेफरल हॉस्पिटल सदर हॉस्पिटल के स्वास्थ्य प्रबंधक होते हैं। चाहे वह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र,समुदाय स्वास्थ्य केंद्र,सदर अस्पताल में हो सभी जगह इनकी ही चलती है।
उल्लेखनीय है कि कांटेक्ट पर हुई बहाली के कारण अधिकांश केंद्रों पर यह लोग अपने ही गृह जिले में स्थापित हो जाते हैं। जो लोग लगभग 10 से 15 सालों से एक ही जगह पर अपना सेवा देते हैं या उसी गृह जिला के रहने के कारण आरोप है कि वे लोग अपना दबंगई भी समय-समय पर दिखाते रहते हैं और दबंगई करने से बाज नही आते है जिससे आम जनता को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कार्य स्थल को अपना घर समझ कर अपनी मनमानी चलाते है और किसी की नही सुनते। और उसके कार्य क्षेत्र में रहने के कारण। ये डीपीएम, मैनेजर बगैरह , स्थानीय लोगों के संपर्क कर सारे चिकित्सकों और कभी-कभी मरीजों के परिजनों पर यहां तक की सिविल सर्जन तक पर हमेशा दबाव बनाकर रखते हैं और अपने गैर जरूरी बातों को मनवा भी लेते हैं। बहुत ऐसे डॉक्टर होते हैं जो सच में अच्छे से काम करना चाहते हैं पर यह मेडिकल माफिया लोग अधिकतर मामलों में दखल डालते रहते हैं।
चिकित्सक बाहर से होने के कारण कई बार उनकी बातों को मान लेते हैं और बरीय अधिकारी और मरीजों के कोपभाजन के शिकार भी होते रहते हैं। सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि डीपीएम,मैनेजर बेगैरह का काम है हॉस्पिटल के सभी व्यवस्था पर ध्यान देना लेकिन बिना घूसखोरी का कोई फाइल आगे बढ़ ही नहीं सकता है। सूत्रों के अनुसार इन सब लोगों का साइड इनकम लाखों में रहता है। स्वास्थ्य मंत्री,मुख्यमंत्री, जिलाधिकारी को यदि सही मायने में हेल्थ डिपार्टमेंट को सुधार करना है तो इन मेडिकल माफिया डीपीएम, डैम, हेल्थ मैनेजर, सिविल सर्जन के बड़ा बाबू के घर पर विजिलेंस के द्वारा छापामारी करवाया जा सकता है। फिर अकूत संपत्ति का राज खुद ही परत दर परत खुलते चले जाएंगे। भ्रष्टाचार में यह लोग पीएचसी और सिविल सर्जन के बीच का महत्वपूर्ण कड़ी का भी काम करता है। सूत्रों के हवाले से स्वास्थ्य विभाग को अगर भ्रष्टाचार मुक्त करना है तो सबसे पहले राज्य स्वास्थ्य समिति, जिला स्वास्थ समिति एवं रोगी कल्याण समिति को भंग कर दिया जाना चाहिए क्योंकि यहीं से कोई भी भ्रष्टाचार की शुरुआत होती है। दवाई का अभाव होना हॉस्पिटल संबंधित सारा व्यवस्था करना इन्हीं सब के हाथ में होता है लेकिन चिकित्सकों को तो ठीक से एक कुर्सी तक नसीब नहीं होता है लेकिन इन सब के चेंबर में एसी लगा मिलेगा,सारा आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित इनका चेंबर आपको मिलेगा। मिली जानकारी के अनुसार हॉस्पिटल में जनरेटर चले ना चले लेकिन जबरदस्ती मेडिकल ऑफिसर द्वारा उनके रजिस्टर पर 10 से 20 घंटे जरनेटर चला इस पर साइन करवाया जाना जरूरी समझा जाता है। यदि डॉक्टर इसका विरोध किए करे तो ऊपर से नीचे तक का आदमी उक्त चिकित्सक को कौवा की तरह नोच खसोट लेगा और उनकी नौकरी तक को किसी ना किसी विधि खतरे में डाल देगा। अंततः चिकित्सक भी अपनी हार स्वीकार कर इनके चंगुल में फंस जाते हैं और नहीं चाहते हुए भी इन माफिया का गुलाम हो जाते हैं। अस्पतालों में दिन में खुद डॉक्टरों को मच्छर काटते रहता है,डेंगू हो जाता है,कोविड ग्रस्त हो जाते हैं यह चिकित्सक तो यह बेचारा मरीज का क्या इलाज करेंगे?यानी सरकारी अस्पतालों का सबसे कोई निरीह प्राणी है तो वह चिकित्सक। बताया गया है कि स्वास्थ्य समिति कि इन लोगों का स्थानांतरण जरूरी है।
यदि दूसरे जगह पर मसलन अन्य जिलों का रहेगा तो खुद ही बिना इधर-उधर किये अपना काम पर ध्यान देगा और सरकार की योजनाओं का लाभ आम लोगों को मिल सकेगा। अस्पतालों में बेचारा डॉक्टर एक निरीह प्राणी मात्र बन रह गया है और आम भोले-भाले जनता से इन्हे ही सुनना पड़ता है जैसे चोर लुटेरा डकैत कामचोर डॉक्टर आदि सामान संबोधन इन चिकित्सकों के लिए आम है। बताया गया है कि सबसे बड़ी चुनौती है नर्सिंग स्टाफ एवं पैरामेडिकल स्टाफ को होती है संबंधित हॉस्पिटल के मैनेजर एबं क्लेर्क के द्वारा सबसे ज्यादा प्रतारित होने वाले यही लोग होती हैं, इन लोगों के पास भी कोई रास्ता नहीं होता है। बस किसी प्रकार से सहन कर काम कर लेना इनकी मजबूरी है? अपना सैलरी तक लेने के लिए इन सब को घूस देना पड़ता है।

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