:हिन्दू पंचाग के अनुसार वर्ष के अंतिम माह फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को होली का त्योहार माना जाता है।

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मातृ उद्बोधन आध्यात्मिक केन्द्र के संचालक ठाकुर अरुण कुमार सिंह ने कहा हिन्दू पंचाग के अनुसार होलिका दहन एवं होली अंतिम माह फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को होली का त्योहार मनाया जाता है।

रिपोर्ट:- सनोवार खान/रोहित कुमार

पटना:हिन्दू पंचाग के अनुसार वर्ष के अंतिम माह फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को होली का त्योहार माना जाता है।

सत्ययुग कालान्तर में कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी दिति से दो पुत्र एवं एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम हिर‌ण्याक्ष, हिरण्यकश्यप एवं होलिका पुत्री के नाम से जाना जाता है। इनलोगों का जन्म जनपद – कासगंज के सौरों शूकरक्षेत्र नामक स्थान पर हुआ था। बड़े भाई हिरण्याक्ष की मृत्यु श्री हरि की बराह अवतार के रूप में
युद्ध के दौरान हुई। हिरण्यकश्यप एवं पत्नी कयादु से चार पुत्रो “का जन्म हुआ जिसमें प्रहलाद, अनुहलाद, सहलाद एवं हलाद है। प्रहलाद सबसे बड़े पुत्र के रूप में है जो श्री हरि विष्णु भगवान के भक्त थे।

हिरणकश्यप जिद्दी और क्रोधी स्वभाव के थे श्री हरि विष्णु के शत्रु है
उनके विचारधारा के विपरीत थे प्रहलाद श्री हरि विष्णु के परम भक्त थे। हिरणकश्यप के द्वारा प्रहलाद को गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा गया।
परंतु वहां भी प्रहलाद श्री हरि विष्णु का नाम लगातार लेते थे इसके विपरीत हिरण्यकश्यप प्रहलाद को प्रताड़ित करते रहे। अंत में हिरण कश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाकर विचार-विमर्श किया जिसके क्रम में होलिका ने प्रस्ताव रखी कि इसे मैं अग्नि में गोद में लेकर बैठ जाऊंगी जिससे ये जल जाएगा होलिका को ब्रह्मा द्वारा यह वरदान था कि वह अग्नि से नहीं जलेगी परंतु वह जल गई और प्रहलाद श्री हरि विष्णु की कृपा से बच गया होलिका का विवाह इलोजी से तय हुआ था और विवाह की तिथि फागुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को तय थी परंतु संयोगवश होलिका अग्निहोत्र हो चुकी थी।
ऐसी मान्यता है कि पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में आज भी वह स्थान मौजूद है जहां असली में होलीका भक्त प्रहलाद को लेकर जली थी मान्यता है कि इसी स्थान पर होलीका अपने भाई हिरण कश्यप के कहने पर भक्त प्रहलाद को लेकर जलती चिता पर बैठ गई थी भगवान विष्णु श्रीहरि नरसिंह अवतार में प्रकट हुए और हिरणकश्यप का वध किया था सिकलीगढ़ में हिरणकश्यप का किला था और यहीं पर भक्त प्रहलाद अपने पिता के साथ रहते थे हिरणकश्यप की नगरी थी हरदोई और वह हरि का द्रोही था इसलिए उन्होंने इसका नाम हरि द्रोही रखा था दक्षिण भारत के साथ-साथ हरदोई जिले में बना नरसिंह भगवान का यह मंदिर के लक्षण एवं अद्वितीय हैं आज हरदोई का नाम हरिद्रोही के नाम से जाना जाता है,
त्रेतायुग के प्रारंभ में विष्णु ने धुलीवंदन किया था इसकी याद में धूलेंडी मनाई जाती है होलिका दहन के बाद रंग उत्सव मनाने की परंपरा भगवान श्री कृष्ण के काल से प्रारंभ हुई तभी से इसका नाम फगवाह हो गया क्योंकि यह फागुन माह में आती है श्री कृष्ण ने राधा पर रंग डाला था इसी की याद में रंग पंचमी भी मनाई जाती है श्री कृष्ण की होली के त्यौहार में रंगों को जोड़ा थाआर्य के युग में जब आर्य क्यालेष्टि यज्ञ करते थे तो उसमें नई फसल का कुछ भाग पहले देवताओं को अर्पित किया जाता रहा है। फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को आर्यलोग जौ की बालियों की आहुति यज्ञ में देकर अग्रिहोत्र का आरंभ करते हैं। होली का प्रमाण एक और अभिलेखों में उल्लेखित है कि विंध्य पर्वत के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष की है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का बध किया था। इसी खुशी में गोपियों से उनके साथ होली खेली थी।

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