पटना, बिहार”पुश्तैनी सोना” हिंदी नाटक का मंचन
“पुश्तैनी सोना” हिंदी नाटक का मंचन
रिपोर्ट नसीम रब्बानी
पटना, डिसेबल स्पोर्ट्स एण्ड वेलफेयर एकेडमी द्वारा संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से पटना के कालिदास रंगालय में डॉ. प्रमोद कुमार सिंह लिखित एवं कुमार मानव निर्देशित हिन्दी नाटक “पुश्तैनी सोना” का मंचन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ उद्घाटनकर्ता जाने माने चिकित्सक डॉ. दिवाकर तेजस्वी, मुख्य अतिथि कुमार अभिषेक रंजन, महासचिव, बिहार आर्ट थियेटर, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ रंगकर्मी अरुण कुमार सिन्हा, कला सांस्कृतिक पुरुष एवं वरिष्ठ पत्रकार विश्वमोहन चौधरी “संत”, रंगकर्मी एवं निर्देशक धर्मेश मेहता ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
विशिष्ट अतिथि श्री सन्त ने दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि कला संस्कृति एव नाटक मंचन देखने से हम में नव चेतना का संचार,स्वास्थ्य मानसिकता और शिक्षा मिलता है।
नाटक के केंद्र में कृष्ण कुमार सिंह थे जिनके पूर्वज जमींदार थे। जमींदारी चली गई लेकिन उनके हिस्से में एक पुरानी खंडहरनुमा हवेली बची थी और दो तीन बीघा जमीन। पुश्तैनी सोना से भरा एक संदूक था जिसे उन्होंने बीमार पत्नी और बेटी की शादी के वक्त भी नहीं खोला। उनके दो पुत्र थे किशोर और महेश। किशोर किसी तरह मैट्रिक पास कर प्राइवेट कॉलेज में कलर्क की नौकरी करता है और महेश ठेकेदारों, हाकिमों के साथ रहकर अपना समय काटता है। किशोर शादीसुदा है उसकी पत्नी हमेशा बीमार रहती है। महेश और किशोर की नजर पुश्तैनी सोना पर है। वे लोग चाहते हैं कि किसी तरह सोना हाथ लग जाए जिससे की घर परिवार कि हालत अच्छी हो जाए। लेकिन कृष्ण कुमार सिंह पुश्तैनी सोना से भरे संदूक को उनके चाहने के बावजूद नहीं खोलते हैं। किशोर चिढ़कर, अपनी पत्नी को लेकर एक किराए की कोठरी में रहने लगता है। कृष्ण कुमार सिंह हमेशा बीड़ी पीते है जिससे उन्हें खांसी होती है। महेश अपने पिता को खांसी की बीमारी का हवाला देकर खून जांच करवाता है और जांच में कैंसर की पुष्टि का रिपोर्ट लेकर आता है। कृष्ण कुमार सिंह मौत सामने देखकर सहम जाते है। अंततः कैंसर से डर कर अपनी जान बचाने के लिए पुश्तैनी सोना का संदूक खोलने को विवश हो जाते हैं। परंतु सारा सोना नकली निकलता है। कृष्ण कुमार सिंह हताश हो जाते है। पिता को निराश देखकर महेश बोलता है कि घबराइए नहीं। जैसे ये गहना नकली है वैसे ही आपकी बीमारी भी नकली है।
सभी कलाकारों ने अपने अभिनय कौशल से नाटक को जीवंत कर दिया। दर्शक अंत तक नाटक से बंधे रहे। कृष्ण कुमार सिंह की भूमिका सरबिंद कुमार, किशोर की भूमिका नाटक के निर्देशक कुमार मानव ने निभाया। सुधा का पात्र रंगोली पांडेय, महेश का विजय कुमार चौधरी एवं धनपत की भूमिका मन्तोष कुमार ने निभाया। प्रकाश ब्रह्मानन्द, रूप सज्जा राधा कुमारी, माया कुमारी, मंच सज्जा बलराम कुमार, पार्श्व ध्वनि मानसी एवं मयंक तथा कार्यक्रम निर्देशक थे सुमन कुमार।