बिहार ,हाजीपुर में बाल विवाह व बलात्कार मामले में 49 वर्षीय मुजरिम को दस साल की सजा, स्व० कन्हाई शुक्ला सामाजिक सेवा संस्थान के सचिव सुधीर कुमार शुक्ला ने की पूरे देश में इसी तरह के फैसलों की अपील
दिल्ली की विशेष पॉक्सो अदालत ने दोषी को 10 साल का सश्रम कारावास व पीड़िता को 10.5 लाख रुपए के मुआवजे का फैसला सुनाया
•बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के सहयोगी संगठन स्व० कन्हाई शुक्ला सामाजिक सेवा संस्थान के सचिव सुधीर कुमार शुक्ला ने पूरे देश में इसी तरह के फैसलों की जरूरत बताई
•देश में पॉक्सो के 2.4 लाख मुकदमे लंबित
दिल्ली की एक विशेष पॉक्सो अदालत के 13 वर्ष की बच्ची से बाल विवाह और बलात्कार के मामले में 49 वर्षीय आरोपी को 10 साल के सश्रम कारावास और पीड़िता को 10.5 लाख रुपए के मुआवजे के आदेश के बाद देश में पॉक्सो के तहत लंबित 2.4 लाख मामलों को तेजी से निपटाने और इसी तरह के कड़े फैसलों की उम्मीद जगी है। गैरसरकारी संगठनों ने इस फैसले पर खुशी जताते हुए पूरे देश में इसी तरह के सख्त फैसलों की अपील की है। बिहार के वैशाली जिले में में बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के सहयोगी संगठन गैरसरकारी संगठन स्व० कन्हाई शुक्ला सामाजिक सेवा संस्थान के सचिव सुधीर कुमार शुक्ला ने आरोपी को मिली कड़ी सजा जो कि बाल विवाह के मामलों में बमुश्किल ही देखने को मिलती है, के लिए न्यायपालिका का आभार जताते हुए देश में पॉक्सो के तहत लंबित मामलों के निपटारे में तेजी लाने की अपील की। संस्था के सचिव सुधीर कुमार शुक्ला कहा, “यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि यौन हिंसा व यौन शोषण के पीड़ित बच्चों को न्याय मिलने में अब और विलंब नहीं हो क्योंकि वे बरसों से अपने साथ अन्याय के जिम्मेदार अपराधियों को सजा का इंतजार कर रहे हैं।” बाल विवाह मुक्त भारत अभियान 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लिए देश के 400 जिलों में जमीनी स्तर पर अभियान चला रहे 200 गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन है।
दिल्ली के तीस हजारी की विशेष पॉक्सो अदालत ने 13 साल की एक नाबालिग बच्ची से विवाह के मामले में शुक्रवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 49 वर्षीय आरोपी को बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 (पीसीएमए), बलात्कार व पॉक्सो की धाराओं के तहत दोषी ठहराते हुए दस साल के सश्रम कारावास और 15 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई। साथ ही अदालत ने पीड़िता को 10.5 लाख रुपए का मुआवजा देने का भी आदेश दिया है।
स्व० कन्हाई शुक्ला सामाजिक सेवा संस्थान के सचिव सुधीर कुमार शुक्ला ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “बाल विवाह के मामले में यह ऐतिहासिक फैसला समाज में कानूनों की अवहेलना के प्रति डर का भाव सुनिश्चित करेगा। हम पूरे देश की अदालतों से अपील करते हैं कि वे बाल विवाह और बलात्कार के मामलों के निपटारे में तेजी लाएं और जघन्य अपराधों के दोषियों को सजा दें। हालांकि हम राज्य सरकारों के साथ समन्वय और हरसंभव सहयोग कर रहे हैं और सरकार व प्रशासन बाल विवाह के खिलाफ जमीनी स्तर पर जागरूकता अभियान और बाल विवाह करने वाले अभिभावकों को समझाने-बुझाने के प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, फिर भी अपराधियों को सख्त सजा देने वाले इस तरह के फैसलों से एक मजबूत और प्रभावी संदेश जाता है।”
दिल्ली की अदालत के इस फैसले को ऐतिहासिक और स्वागत योग्य बताते हुए अधिवक्ता, बाल अधिकार कार्यकर्ता एवं बाल विवाह मुक्त भारत (सीएमएफआई) के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा, “इस फैसले से एक बार फिर यह तथ्य स्थापित हुआ है कि बाल विवाह का एक ही नतीजा है और वह है बच्चों से बलात्कार। मैं उम्मीद करता हूं कि यह फैसला एक नजीर बनेगा। बाल विवाह के खिलाफ निर्णायक कदमों से हम 2030 तक देश से इसका खात्मा कर सकते हैं। सरकार का लक्ष्य भारत को एक विकसित देश बनाने का है पर यह 18 वर्ष की उम्र तक अनिवार्य मुफ्त शिक्षा और बाल विवाह के खात्मे से ही संभव हो पाएगा।”
बाल विवाह के खात्मे के लिए 2022 में शुरू हुए ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान ने तब से अपनी पहुंच, प्रभाव और सहयोगियों के नेटवर्क में उल्लेखनीय विस्तार किया है। पिछले वर्ष तक इस अभियान के 17 राज्यों में 161 गठबंधन सहयोगी थे जो अब बढ़कर 200 हो गए हैं और अभियान देश के 22 राज्यों तक पहुंच गया है। यह अभियान बाल मजदूरी और बाल यौन शोषण के खिलाफ भी काम कर रहा है यद्यपि इसका मुख्य ध्यान बाल विवाह के खात्मे पर है। देश के 400 जिलों में चल रहे इस अभियान में ज्यादातर जिले वो हैं जहां बाल विवाह की दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। इस अभियान के मूल में बाल अधिकार कार्यकर्ता भुवन ऋभु की बेस्टसेलर किताब “व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन : टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज” में बाल विवाह के खात्मे के लिए बताई गई कार्ययोजना है।