हाजीपुर के इतिहास में सदा याद किये जायेंगे उमा शंकर उपेक्षित:शशि भूषण —————————————
हाजीपुर:. आज स्थानीय पुस्तकालय ‘बाबू शिवजी राय मेमोरियल लाइब्रेरी’ में संस्थान के साहित्य-सचिव मेदिनी कुमार मेनन के संयोजकत्व में कवि-साहित्यकार और इस शहर व जनपद की अनेक साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं के अभिभावक-मार्गदर्शक
तथा पोषक-संरक्षक स्मृतिशेष उमाशंकर ‘उपेक्षित’ की 83वीं जयंती सफलता पूर्वक मनाई गई।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन वैशाली के अध्यक्ष डॉ शशि भूषण कुमार की अध्यक्षता और मेदिनी कुमार मेनन के संचालन में आयोजित इस जयंती की शुरुआत मुख्य अतिथि अधिवक्ता राकेश कुमार द्वारा संयुक्त उद्घाटन से हुई। उन्होंने अपने उद्घाटन-वक्तव्य में कवि-साहित्यकार उमाशंकर ‘उपेक्षित’ को सृजन-कर्म व व्यवहारिक आचरण – दोनों स्तर पर – एक ऐसा प्रेरक एवं अनुकरणीय व्यक्तित्व बताया, जिस पर इस वैशाली जनपद को सदैव गर्व रहेगा। आयोजन में उपस्थित सभी साहित्यकारों -संस्कृतिकर्मियों द्वारा उपेक्षित जी की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित की गई और चांदनी श्रीवास्तव द्वारा महाप्राण निराला रचित सरस्वती-वंदना ‘वर दे वीणा-वादिनी, वर दे’ प्रस्तुत की गई। तत्पश्चात्, कवि और उनके सुपुत्र विजय कुमार ‘विनीत’ ने परिचर्चा हेतु विषय-प्रवेश से कराया। विषय था ‘उमाशंकर ‘उपेक्षित’ का व्यक्तित्व एवं कृतित्व : एक झलक’ । विषय-प्रवेश में विनीत ने इस आयोजन के लिए लाइब्रेरी की प्रशंसा करते हुए कहा कि रचनाधर्मिता से जुड़े सभी साहित्य-कर्मियों और कला-कर्मियों , विशेषकर युवा पीढ़ी और नई संभावनाओं, को प्रश्रय देना, हरसंभव तरीके से प्रोत्साहित करते रहना, हिंदी व बज्जिका के समर्थ रचनाकार पूज्यवर उपेक्षित जी के लिए जगदीश चंद्र माथुर के ‘भोर का तारा’ नाटक के नायक की तरह, निजी तौर पर उनकी रचनात्मकता का ही हिस्सा हुआ करता था। चर्चा को आगे बढ़ाते हुए युवा कवि-संस्कृतिकर्मी मेदिनी कुमार मेनन ने समय तथा समाज की विडंबनाओं को चित्रित करने वाली ‘कि मंजिल एक-दो डग और’, ‘रऊदा-छांही’ आदि उत्साहयुक्त ऊर्जा से भर देने वाली उनकी हिंदी व बज्जिका में लिखी गई कुछ प्रमुख रचनाओं का उल्लेख किया, और साथ ही, उनके अभिभावकीय मार्गदर्शन व संपोषण से चलने वाली वैशाली जनपद की अनेकानेक संस्थाओं की विस्तार से चर्चा की। संस्कृतिकर्मी राजेश पाराशर जी ने कहा कि किसी भी शहर अथवा जनपद की युवा पीढ़ी के रचनात्मक उत्साह को बनाए रखने के लिए उपेक्षित जी जैसे व्यक्तित्वों की ज़रूरत हुआ करती है और अब वैशाली जनपद को दिए गए अपने इस योगदान के लिए वे सदैव याद किए जाएंगे। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में शशिभूषण सिंह ने उन्हें बराबर अभिभावकीय मार्गदर्शन देते रहने वाले उपेक्षित जी के साथ बिताए गए अनेक अविस्मरणीय क्षणों का उल्लेख करते हुए कहा कि वे हम सबके लिए ऐसे प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में याद किए जाएंगे जिनके लिए कविता से लेकर रंगकर्म तक की रचनात्मक गतिविधि और रचना-प्रक्रिया सिर्फ कागज-कलम का हिस्सा नहीं हुआ करती थी, बल्कि व्यवहारत: वे उसे अपने जीवन में जीते थे और बिना किसी ‘उफ्’ हमेशा सबों को सहयोग के लिए तत्पर रहते थे। सदा याद किये जायेंगे उपेक्षित जी।
जयंती समारोह के दूसरे सत्र में, आयोजन में सभी साहित्यकर्मियों एवं संस्कृतिकर्मियों द्वारा उनकी ‘नववर्षाभिनंदन’, ‘प्रात-गात’, ‘कि मंजिल एक-दो डग और’ ‘रऊदा-छांही’ आदि कविताओं का पाठ किया गया। समारोह का समापन…….. द्वारा धन्यवाद-ज्ञापन से हुआ।
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