यूपी बदायूं की धरती पर इंसाफ की एक किरण जगी है, मगर इस रोशनी के पीछे छिपा है मुस्लिम समुदाय का वो दर्द, जो पुलिस की बर्बरता और जुल्म की दास्तां बयां करता है। 27 जुलाई 2024 को बिलाल, अशरफ, अजीत, तरनवीर और मुख्ययार के घरों पर पुलिस का कहर टूटा। बिना किसी गुनाह, बिना किसी सबूत, इन बेगुनाहों को उनके घरों से जबरन उठा लिया गया। तीन दिन तक, 30 जुलाई तक, पुलिस ने इन्हें गैरकानूनी हिरासत में रखा, जुल्म ढाए, और फिर एक फर्जी नाटक रचा। नशीले पदार्थों के साथ गिरफ्तारी का ढोंग रचकर प्रेस नोट जारी किया, जबकि FIR 31 जुलाई को दर्ज हुई। यह सब एक सुनियोजित साजिश थी, जो मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने की पुरानी कड़वी हकीकत को उजागर करती है। इन बेगुनाहों के वकील ने कोर्ट में CCTV फुटेज पेश की, जिसने पुलिस की करतूत को नंगा कर दिया। फुटेज ने साफ दिखाया कि कैसे इन लोगों को गलत ढंग से हिरासत में रखा गया, कैसे फर्जी डोडा बरामदगी दिखाकर इन्हें जेल की सलाखों के पीछे धकेला गया। यह सिर्फ एक परिवार की कहानी नहीं, बल्कि उस चीख का दर्द है, जो बार-बार मुस्लिम समुदाय को झेलना पड़ता है। पुलिस का यह जुल्म, यह पक्षपात, यह बेगुनाहों को फंसाने की साजिश, क्या सिर्फ इसलिए कि उनके नाम बिलाल, अशरफ हैं? इस घटना ने एक बार फिर साबित किया कि अपने घरों और दुकानों पर CCTV कैमरे लगाना कितना जरूरी है। ये कैमरे न सिर्फ हमारी सुरक्षा करते हैं, बल्कि ऐसी साजिशों के खिलाफ सबूत भी बन सकते हैं, जैसा कि इस मामले में हुआ।
कोर्ट ने 25 पुलिसवालों के खिलाफ FIR का आदेश दिया है, मगर क्या यह इंसाफ की पूरी जीत है? क्या उन रातों का दर्द मिटेगा, जो इन बेगुनाहों ने हिरासत में जुल्म सहते हुए बिताईं? क्या उन परिवारों का भरोसा लौटेगा, जो हर दिन इस डर में जीते हैं कि कब पुलिस उनके दरवाजे पर दस्तक देगी? यह कार्रवाई एक कदम है, मगर असली इंसाफ तब होगा, जब ऐसी साजिशें रुकेंगी, जब धर्म के आधार पर बेगुनाहों को निशाना नहीं बनाया जाएगा। अपने घरों और दुकानों पर CCTV कैमरे जरूर लगवाएं, क्योंकि यह न सिर्फ आपकी हिफाजत है, बल्कि सच को सामने लाने का हथियार भी है। यह बदायूं की कहानी नहीं, हिंदुस्तान के हर उस कोने की हकीकत है, जहां मुस्लिम होने की सजा बेगुनाहों को दी जाती है।



