सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार यौन शोषण के पीड़ित बच्चों की सहायता के लिए तत्काल ‘सपोर्ट पर्सन’ की नियुक्ति करे बिहार सरकार
‘सपोर्ट पर्सन’ की अनिवार्य रूप से नियुक्ति का सुप्रीम कोर्ट का आदेश राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से प्रस्तावित दिशानिर्देशों के आधार पर है
•शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों/केंद्रशासित क्षेत्रों से चार हफ्ते में अनुपालन रिपोर्ट सौंपने को कहा
•’एक्सेस टू जस्टिस’ कार्यक्रम के सहयोगी संगठन स्व0 कन्हाई शुक्ला सामाजिक सेवा संस्थान ने राज्य में तत्काल इस आदेश पर अमल की मांग की
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की ओर से प्रस्तावित दिशानिर्देशों पर मुहर लगाते हुए सभी राज्यों व केंद्रशासित क्षेत्रों को यौन शोषण के पीड़ित बच्चों के लिए अनिवार्य रूप से ‘सपोर्ट पर्सन’ की नियुक्ति का आदेश देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बिहार के वैशाली, सिवान एवं बक्सर जिले में बाल अधिकारों के लिए काम कर गैरसरकारी संगठन स्व0 कन्हाई शुक्ला सामाजिक सेवा संस्थान ने इस आदेश पर तत्काल प्रभाव से अमल की अपील की है। स्व0 कन्हाई शुक्ला सामाजिक सेवा संस्थान बिहार के वैशाली, सिवान एवम बक्सर जिले में ‘एक्सेस टू जस्टिस’ कार्यक्रम का सहयोगी है जो दुनिया के सबसे बड़े कानूनी हस्तक्षेप कार्यक्रमों में शुमार है और इसके साथ 200 से भी ज्यादा संगठन बच्चों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए 400 से ज्यादा जिलों में जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने सभी राज्य सरकारों/केंद्रशासित क्षेत्रों को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत लंबित मामलों में पीड़ित बच्चों की सहायता के लिए एनसीपीसीआर के दिशानिर्देशों के मुताबिक ‘सपोर्ट पर्सन’ की नियुक्ति, उनकी योग्यता और जिम्मेदारियां तय करने के आदेश पर अमल के बाबत चार हफ्ते में अनुपालन रिपोर्ट सौंपने को कहा है।
बताते चलें कि सपोर्ट पर्सन वह व्यक्ति होता है जो यौन शोषण व उत्पीड़न के शिकार बच्चों की भावनात्मक व कानूनी रूप से मदद करते हुए उन्हें पीड़ा से उबरने व समाज की मुख्य धारा में वापस लाने में सहयोग करता है।
बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) की ओर से दायर याचिका में उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में दलित नाबालिग बच्ची के साथ पांच महीने तक सामूहिक बलात्कार और शिकायत करने के लिए थाने जाने पर वहां एक पुलिस अधिकारी द्वारा उससे बलात्कार का मामला उठाते हुए बच्चों के प्रति मित्रवत नीतियों और बच्चों की सुरक्षा से जुड़े दिशानिर्देशों पर अमल का आदेश देने की मांग उठाई गई थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए बिहार के वैशाली, सिवान एवं बक्सर जिले में बाल अधिकारों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए काम कर रहे गैरसरकारी संगठन स्व0 कन्हाई शुक्ला सामाजिक सेवा संस्थान के सचिव सुधीर कुमार शुक्ला ने कहा, “यह एक ऐतिहासिक फैसला है जो यौन शोषण के पीड़ित बच्चों की कई तरह से मदद करेगा। जमीन पर काम करने वाला संगठन होने के नाते हम कानूनी लड़ाई के दौरान बच्चों के संघर्षों और उनकी परेशानियों से अच्छी तरह वाकिफ हैं। ‘एक्सेस टू जस्टिस’ कार्यक्रम का सहयोगी होने के तौर पर हम चाहते हैं कि यौन शोषण के पीड़ित असंख्य बच्चों और उनके परिवारों की तकलीफ को कम करने के लिए राज्य सरकार तत्काल सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर अमल करे। हम …(जिले का नाम) में पॉक्सो के…(संख्या) मामलों में पीड़ित बच्चों की मदद कर रहे हैं। ‘सपोर्ट पर्सन’ की नियुक्ति से पीड़ित बच्चों को अपनी पीड़ा से उबरने और उसका शोषण करने वाले अपराधी से अदालत में सामना करने में मदद मिलेगी।”
ये दिशानिर्देश योग्यता का एक समान मानक स्थापित करते हैं, जहां नियुक्ति के इच्छुक अभ्यर्थियों के लिए सामाजिक कार्य, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान या बाल विकास में स्नातकोत्तर डिग्री अनिवार्य है। वैकल्पिक रूप से, स्नातक डिग्री और बाल शिक्षा, बाल विकास या बाल सुरक्षा के क्षेत्र में न्यूनतम तीन साल का अनुभव वाले उम्मीदवार भी पात्र हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की सराहना करते हुए याची का प्रतिनिधित्व कर रहीं रचना त्यागी ने कहा, ”यह आदेश इस महत्वपूर्ण तथ्य को रेखांकित करता है कि शीर्ष अदालत पीड़ित बच्चों और उनके परिवारों की परेशानियों को लेकर गंभीर है। यह एक ऐतिहासिक आदेश है जो इन बच्चों की देखभाल और सहायता सुनिश्चित करेगा और पीड़ित बच्चों के पुनर्वास का मार्ग प्रशस्त करेगा।”
एनसीपीसीआर ने एक समग्र दिशानिर्देश प्रस्तावित किया था जिस पर अब सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी है। दिशानिर्देशों में इस बात पर जोर दिया गया है कि एक समान नीति तैयार की जानी चाहिए, जिससे आगे उचित समय पर बच्चों की सहायता में दक्ष व्यक्तियों का एक पैनल तैयार किया जा सके। साथ ही, ‘सपोर्ट पर्सन’ को उनके कार्य और दायित्वों के अनुरूप उचित पारिश्रमिक का भुगतान किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, एक अखिल भारतीय पोर्टल भी बनाया जाए और यह आम लोगों और बाल संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहे किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) और बाल कल्याण समितियों (सीडब्ल्यूसी) के लिए भी सुलभ हो। यह पोर्टल प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित क्षेत्र में उपलब्ध सभी सहायक व्यक्तियों की एक विस्तृत सूची प्रदान करेगा। प्रत्येक राज्य गैरसरकारी संगठनों का एक पैनल भी बनाए रखेगा और ऐसे व्यक्तियों का सहयोग करेगा जिनकी सेवाएं सीडब्ल्यूसी और जेजेबी के लिए उपयोगी हो सकती हैं। इस पहल का उद्देश्य सहायक सेवाओं तक पहुंच को सुव्यवस्थित करना और बाल संरक्षण एजेंसियों के बीच समन्वय बढ़ाना है।
शीर्ष अदालत ने देश के प्रत्येक थाने में अर्धन्यायिक स्वयंसेवियों की नियुक्ति के आदेश पर अमल के बाबत राष्ट्रीय विधिक सेवाएं प्राधिकरण (नालसा) को चार हफ्ते में अनुपालन रिपोर्ट सौंपने का निर्देश भी दिया।