बिहार में श्री लालु यादव और उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल गरीबों कमज़ोरों को आवाज देना बंद नहीं किया आज भी साम्प्रदायिक शक्तियों से मजबूती के साथ लड़ रहे हैं
मधुबनी संवाददाता मो सालिम आजाद
लालू यादव को सवर्ण जातियां अगले सौ साल तक माफ नहीं करेंगी, जबकि बहुजन जातियां उनकी सौ गलतियों को माफ करती रहेंगी। ऐसा इसलिए कि उन्होंने गरीबों, शोषितों को आवाज दी। सवर्ण नेतृत्व वाली शासन-प्रशासन, जांच एजेंसियों, न्यायपालिकाओं से अत्यधिक प्रताड़ित करने, मुख्यमंत्री पद से हटाने, जनप्रतिनिधि के लिए अयोग्य ठहराने के बाद भी लालू यादव और उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल गरीबों को आवाज देना बंद नही किया। आज भी साम्प्रदायिक शक्तियों से मजबूती के साथ लड़ रहे हैं लालू प्रसाद यादव बिहार के राजनीतिक इतिहास के उन नेताओं में रहे हैं जिनके खलनायकत्व से 90 के दशक से लेकर अब तक की हिंदी क्षेत्र की मुख्यधारा का इतिहास, साहित्य, मीडिया, अकादमिक जगत और समकाल भरा-पूरा है। भारत के इतिहास में अभी तक शायद ही कोई ऐसा व्यक्तित्व हुआ जिसको खलनायकत्व की इतनी तरह की भ्रांतियों से धूल-धूसरित किया गया हो। निर्णायक ढंग से अभी भी उन्हें बदनाम करने का यह अभियान थमा नहीं है। लेकिन सच यह भी है कि उन्हें खलनायक के रूप में चित्रित करने की जितनी कोशिशें होंगी, उनके नायकत्व में और ज्यादा निखार आयेगा। उनके शासनकाल को जंगलराज कहा गया। इस तरह के नैरेटिव गढ़े जाने के पीछे सवर्ण जातियों का वह दुराग्रह रहा है जो 90 के पहले बिहार की राजनीति और सिस्टम में छाये उनके वर्चस्व से जुड़ा है। लालू प्रसाद ने सदियों से कायम उसी सवर्ण वर्चस्व को तोड़ा। बिहार में अरसे से चली आ रही अभिजन राजनीति को हमेशा के लिए हाशिये पर डाल दिया।ओबीसी के सशक्तिकरण का जो एजेंडा वर्षों के त्रिवेणी संघ आंदोलन, पिछड़ा वर्ग आंदोलन, समाजवादी आंदोलन और अर्जक संघ आंदोलन द्वारा पूरे नहीं किये जा सके थे- लालू प्रसाद ने उसे पूरी तरह कार्यान्वित करने की मुहिम में बदल दिया मंडल के पहले राजनीति में बहुजन वर्ग समूह हाशिए पर थे। कांग्रेस या दूसरे दलों में उनकी हैसियत पिछलग्गू की थी। इस घटना के फलस्वरुप राजनीति में बहुजन नेताओं का बड़े पैमाने पर उभार हुआ। लालू प्रसाद इस उभार के बड़े प्रेरक बने। यह वह समय था जब केंद्र और राज्य की नीतियों को वे सीधे प्रभावित करते थे। उनकी सहमति की के बगैर कुछ भी करना संभव नहीं था। यह लालू यादव और मुलायम ही थे जिनकी अगुवाई में बहुत सारे बहुजन सांसदों ने वगैर पिछड़ा दलित आदिवासी की भागीदारी वाला महिला आरक्षण बिल को संसद में पास नहीं होने दिया। यह वही दौर था जब पूरे भारतीय राजनीति में आरक्षण को सर्वानुमति मिली और पूरे देश में बहुजन वैचारिकी को बल मिला। ज्योतिबा फूले, डॉ अंबेडकर, डॉ लोहिया और पेरियार रामास्वामी नायकर को फिर से पढ़े जाने लगे। इनके साहित्य का प्रचार-प्रसार बढ़ा। कम्युनिस्ट और भाजपा जैसी सवर्ण नेतृत्व वाली पार्टियों में हाशिए की जातियों का दखल बढ़ा। मंडल परिघटना का यह प्रभाव यही तक सीमित नहीं रहा अपितु इसकी अनुगूंज पूरे भारतीय उपद्वीप में सुनाई पड़ने लगी। यह अकारण नहीं कि गैर सवर्ण एचडी देवगौड़ा भारत के प्रधानमंत्री बनते हैं और नेपाल में मधेशी आंदोलन से आये रामवरण यादव राष्ट्रपति बने ओबीसी एससी एसटी वर्ग के समाज को जागरूक करने के बाद भी सामाजिक न्याय वर्ग के लोग भारी तादाद में पदलोलुपता वह संविधान विरोधी, आरक्षण विरोधी, लोकतंत्र विरोधी, गैर बराबरी बढ़ाने वाली शक्ति, समाज में नफरत फ़ैलाने वाले, साम्प्रदायिक शक्तियों के साथ मिलकर उन्हें शक्तिशाली बनाने में लगी हुई है जिससे आनेवाली पीढ़ियां को गुलामी की ओर ढकेल रही है। अभी भी सावधान होने की आवश्यकता है राम सुदिष्ट यादव समाजवादी विचारक मधुबनी बिहार।